'इन्टरनेट लत विकार'-भारतीय युवाओं में बढ़ता रोग
इन्टरनेट लत विकार(Internet  Addiction  Disorder ) शायद आज सबसे तकनीकी और आधुनिक और ख़ास कर एकमात्र  ऐसी  बीमारी है जो सिर्फ  पढ़े-लिखे  युवाओं को अपने गिरफ्त में ले रही है.सबसे पहले यह जान लेना उचित होगा की यह बीमारी सिर्फ इन्टरनेट के अत्यधिक प्रयोग करने वाले को ही होती है.
                  वैसे तो सबसे पहले इसे बीमारी के रूप में न्युयोर्क के मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. इवान गोल्डबर्ग ने १९९५ ई० में पहचाना था और इसके लक्षणों को दुनिया के सामने रख कर इस शब्द को मेडिकल साइंस में जगह दिलवाने की कोशिश की थी,पर तब शायद दुनिया ने इसे उतनी गंभीरता से नहीं लिया था.पर जैसे-जैसे इन्टरनेट का प्रसार पूरी दुनिया में हुआ,ये बीमारी एक गंभीर समस्या के रूप में उभर कर सामने आ गयी .आज ये जब करोड़ों लोगों की जिन्दगी बर्बाद करने लगी  तो शायद इसके प्रति जागरूकता की आवश्यकता पूरी दुनिया को महसूस होने लगी है.
  क्यों होता है ये विकार और इसके लक्षण क्या हैं?
वर्ष १९९६ में अमेरिका में पहली बार डा. किम्बरले यंग के द्वारा इन्टरनेट लत विकार पर अध्ययन किये गए तथा टोरंटो  में हुए अमेरिकन सायकोलोजिकल असोसिअसन के वार्षिक कांफेरेंस में उन्होंने अपना पेपर "इन्टरनेट एडिक्सन:द इमर्जेंस आफ  न्यू डिसऑर्डर" प्रस्तुत किया.उसके बाद पूरे विश्व में इस पर अध्ययन का सिलसिला शुरू हुआ और पाया गया कि दुनियां के कई देश गंभीर रूप से इसके गिरफ्त में हैं.
   आइये इसके कुछ विशेष लक्षणों पर दृष्टिपात करें और खुद को देखें कि क्या आप भी इसकी गिरफ्त में आ रहें हैं?
  1.क्या आप इन्टरनेट पर अपने कार्यालय या अध्ययन के अलावे ज्यादा से ज्यादा समय देना चाहते हैं?
  २.क्या आप जितना सोच कर नेट पर बैठते हैं,बैठने के बाद उससे काफी ज्यादा यूज करते हैं?
  ३.क्या इन्टरनेट के यूज के समय या बाद आप ज्यादा बेचैन, निराश,मूडी या चिडचिडा महसूस करते हैं?
  ४.क्या आप निष्पक्ष होकर कह सकते हैं कि आप इन्टरनेट के चलते परिवार,कार्य,शिक्षा या भविष्य को नजर अंदाज करने लगे हैं?
  ५. क्या आप इन्टरनेट के प्रयोग कि मात्रा या प्रकार के बारे में लोगों से छिपाते हैं?
  ६.क्या आप अपने व्यवहार को नियंत्रित करने का असफल प्रयास करते हैं?
  ७.क्या हर बार या अक्सर इन्टरनेट यूज करने के बाद आप यह सोचते हैं कि अगली बार कम यूज करेंगे?
  ८.क्या आप इन्टरनेट के प्रयोग के समय असीम आनंद की अनुभूति करते हैं?
  ९.क्या आप ऑनलाइन रहने के लिए नींद की अवहेलना करते हैं?
  १०.क्या आप नेट के प्रयोग के बाद अपने को शर्मिंदा,चिंतित या अवसादग्रस्त पाते हैं?
               यदि उपर्युक्त प्रश्नों में से आप एक भी उत्तर हाँ में देते हैं,तो समझिये आप इस महामारी जिसे अंग्रेजी में इन्टरनेट एडिक्सन डिसआर्डर (आइ० ए० डी0) और मेरे अनुसार हिंदी में 'इन्टरनेट लत विकार' (ई० ल० वि०) कहा जा सकता है,के शिकार हो गए हैं,जो एक अत्यंत गंभीर मानसिक रोग है और इसके लिए इलाज की आवश्यकता हो सकती है.
    भारत में इसके तरफ लोगों का ध्यान तब से जाने लगा जब २००५ ई० में IIT Bombay के चोथे वर्ष के छात्र विजय नुकाला ने अत्यधिक कंप्यूटर के प्रयोग के चलते तीन विषयों में फेल हो जाने के कारण आत्महत्या कर ली.(विस्तृत समाचार के यहाँ ल्किक करें.)
   दरअसल इंजीनियरिग तथा अन्य कॉलेज के होस्टलों में देर रात तक हैकिंग कम्पिटीसन,गेमिंग कम्पिटीसन,म्यूजिक तथा सॉफ्टवेर डाउनलोड, अश्लील पिक्चर तथा विडियो डाउनलोड,चेटिंग तथा ओर्कुटिंग आदि में रात में व्यस्त रहने के कारण ख़ास कर सुबह वाले क्लास में इनकी उपस्थिति कम हो जाती हैं और अकेडमिक कैरिअर ख़राब हो जाने की वजह इनके डिप्रेसन व आत्महत्या का कारण बनती है.

  इन्टरनेट का अनियंत्रित प्रयोग खतरनाक
इन्टरनेट के प्रयोग में एक महत्वपूर्ण बात जो सामने आती है,वो है यूजर्स का 'वर्चुअल' लाइफ में यानी काल्पनिक दुनिया में खो जाना और यहीं से युवा मानसिक रोगी हो जाते हैं.इन्टरनेट पर उन्हें विपरीत यौन सम्बन्ध तथा साइबर सेक्स तक की आज़ादी मिल जाती है,चेटिंग आदि के माध्यम से,खास कर इन्टरनेट पर उपलब्ध सेक्स संबंधी चेटिंग रूम में यौन संतुष्टि तक का एहसास मिल जाता है.विपरीत यौनाकर्षण तथा दोस्ती कर वे कल्पना की दुनिया में खोये रहना चाहते हैं और उस समय इसमें बाधा उत्पन्न होने पर वो झल्ला उठते हैं और यहीं से उनमे चिडचिडापन,डिप्रेसन आदि पनपने लगता है.इन्टरनेट पर उपलब्ध अथाह सामग्री के द्वारा वे अपने अन्य शौक भी पूरा करने में अनियंत्रित हो जाते हैं.
   अभी तक भारतीय समाज में इन्टरनेट के प्रयोग करने वाले को प्रशंसा की दृष्टि से देखा जाता है और उनके अभिभावक भी इस इस बात पर ध्यान नहीं दे पाते हैं कि इस सुविधा का अत्यधिक या बेवजह प्रयोग जानलेवा अथवा कम से कम भविष्य बिगाड़ने वाला तो साबित हो ही सकता है.

कैसे रोकें इस बीमारी को?
 सबसे पहले तो किसी भी लत को दूर करने के लिए रोगी(यहाँ इन्टरनेट रोगी) को स्वयं आत्मविश्वास के साथ अपने को नियंत्रित करने की आवश्यकता है.अभिभावक को चाहिए कि वो खुद भी इन्टरनेट की जानकारी प्राप्त करें और बच्चों को अत्यधिक इन्टरनेट यूज से रोकें,आवश्यकता पड़ने पर 'पेरेंटल कण्ट्रोल' जैसे सॉफ्टवेर आदि का भी प्रयोग किया जा सकता है.अमेरिका में तो सिएटल,वाशिगटन में रेसिदेंसिअल  ट्रीटमेंट सेंटर की स्थापना अगस्त २००९ में की गई है,जो इस रोग से ग्रसित लोगों को ४५ दिनों का इलाज करती है.पर भारत में अभी इसके लिए कोई ट्रीटमेंट सेंटर नहीं खोला गया है,जबकि ये बीमारी लाखों युवाओं के भविष्य को डुबो रही है.युवाओं की पोजिटिव एनेर्जी जो उसके केरिअर को बना सकती है,दिन रात इन्टरनेट के जाल में फंसकर उसे बर्बाद कर रही है.
     यहाँ आवश्यकता है हम सबको इन्टरनेट जैसी बहुपयोगी तकनीक के सही प्रयोग के जानकारी की,और दिग्भ्रमित युवा पीढ़ी को इसके दुरूपयोग से बचने की सलाह देने की,जिससे हम देश के विकास में सहयोग का हिस्सा बन सकें. 

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4 comments to “ ”

  1. स्वागतम् !

    बहुत सामयिक विषय पर लिख रहे हैं। बहुत उपयोगी है।

  1. nice post. be aware of net addiction!

  1. आपका स्वागत है !

  1. is aalekh se thoda-thoda khud ko bhi is kasauti par taul paa rahaa hun....sach kahaa hai aapne.....yahaan par......